मटर एक प्रसिद्ध दलहनी सब्जी फसल है, जिसे हरे दानों के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके पौधे बेलनुमा होते हैं, जिनमें सफेद या हल्के बैंगनी रंग के फूल आते हैं और बाद में फलियों के अंदर हरे, गोल दाने बनते हैं। मटर स्वाद में मीठी, पौष्टिक और जल्दी पकने वाली फसल मानी जाती है, जिस कारण इसकी मांग हर वर्ग में रहती है।
भारत में मटर की खेती का महत्व
भारत में मटर की खेती रबी मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में इसकी खेती प्रमुख रूप से होती है। मटर न केवल सब्जी के रूप में उपयोगी है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक होती है क्योंकि यह दलहनी फसल होने के कारण भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है।
किसानों के लिए मटर की खेती क्यों फायदेमंद है
मटर की खेती किसानों के लिए कई कारणों से लाभदायक मानी जाती है। इसमें लागत कम लगती है और सही देखभाल करने पर अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को उचित दाम मिल जाते हैं। साथ ही, मटर की फसल को अन्य फसलों के साथ सहफसल के रूप में भी उगाया जा सकता है।
कम समय में तैयार होने वाली नकदी फसल के रूप में मटर
मटर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कम समय में तैयार होने वाली नकदी फसल है। बुवाई के लगभग 60–70 दिनों में हरी मटर की तुड़ाई शुरू हो जाती है। जल्दी तैयार होने के कारण किसान कम समय में अपनी लागत निकालकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसी वजह से मटर की खेती छोटे और मध्यम किसानों के लिए एक उत्तम विकल्प साबित होती है।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मटर की अच्छी फसल पाने के लिए जितनी मेहनत खेत में की जाती है, उतनी ही समझ मौसम और जलवायु की भी जरूरी होती है। सही जलवायु मिलने पर मटर का पौधा स्वस्थ रहता है, फलियां ज्यादा बनती हैं और दाने भरपूर व मीठे होते हैं। इसलिए अगर किसान शुरुआत से ही मौसम का ध्यान रखे, तो मटर की खेती से अच्छा लाभ आसानी से लिया जा सकता है।
मटर के लिए अनुकूल मौसम
मटर मूल रूप से ठंडे मौसम की फसल है। इसे रबी मौसम में उगाया जाता है, जब वातावरण में हल्की ठंड और नमी बनी रहती है। भारत में मटर की बुवाई आमतौर पर अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। इस समय मौसम न ज्यादा गर्म होता है और न ही बहुत ज्यादा ठंडा, जो मटर के अंकुरण और शुरुआती बढ़वार के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
ठंडे और शुष्क मौसम में मटर की फसल रोगों से भी कम प्रभावित होती है, जिससे पौधे मजबूत बनते हैं और उत्पादन अच्छा होता है।
तापमान की सही सीमा
मटर की खेती के लिए तापमान का सही होना बहुत जरूरी है।
बीज अंकुरण के समय 10 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है।
पौधों की बढ़वार और फूल आने के समय 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान आदर्श रहता है।
अगर तापमान इस सीमा में रहता है, तो पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं, फूल ज्यादा आते हैं और फलियों का विकास बेहतर होता है। सही तापमान मटर के दानों की मिठास और गुणवत्ता को भी बढ़ाता है।
ठंडे मौसम में मटर की बढ़वार
ठंडा मौसम मटर की फसल के लिए वरदान जैसा होता है। हल्की ठंड में पौधे धीरे-धीरे लेकिन मजबूत बढ़ते हैं। इस दौरान पत्तियां हरी भरी रहती हैं और फूल झड़ने की समस्या कम होती है। ठंडे वातावरण में पौधे अपनी पूरी ऊर्जा फलियों और दानों के विकास में लगाते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ जाता है।
यही कारण है कि जिन क्षेत्रों में सर्दी अच्छी पड़ती है, वहां मटर की फसल ज्यादा सफल और लाभदायक साबित होती है।
अधिक गर्मी या पाले का प्रभाव
अगर मटर की फसल को ज्यादा गर्मी मिल जाए, तो यह पौधों के लिए नुकसानदायक हो सकती है।
अधिक तापमान होने पर:
- पौधों की बढ़वार रुक जाती है
- फूल झड़ने लगते हैं
- फलियां कम बनती हैं
वहीं दूसरी ओर, ज्यादा पाला पड़ने से भी मटर की फसल को नुकसान होता है। तेज पाले में पौधों की पत्तियां जल सकती हैं और फूल व फलियां खराब हो सकती हैं। इसलिए बहुत अधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी दोनों ही मटर की खेती के लिए हानिकारक हैं।
अगर किसान मटर की खेती सही जलवायु और उपयुक्त मौसम में करता है, तो यह फसल कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है। ठंडा और संतुलित मौसम, सही तापमान और पाले से बचाव ये सभी बातें मटर की सफल खेती की नींव हैं। मौसम को समझकर की गई खेती ही किसान की मेहनत को असली फल देती है।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मटर की अच्छी और भरपूर पैदावार का सीधा संबंध मिट्टी की गुणवत्ता से होता है। किसान चाहे कितनी भी अच्छी किस्म का बीज बो ले, अगर मिट्टी उपयुक्त नहीं होगी तो फसल से मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाएगा। इसलिए मटर की खेती शुरू करने से पहले मिट्टी को समझना और तैयार करना बहुत जरूरी होता है। सही मिट्टी न सिर्फ पौधों को मजबूती देती है, बल्कि उनकी जड़ों से लेकर फलियों तक हर हिस्से को पोषण प्रदान करती है।
किस प्रकार की मिट्टी मटर के लिए सर्वोत्तम है
मटर की खेती के लिए हल्की, उपजाऊ और भुरभुरी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। ऐसी मिट्टी जिसमें हवा और पानी का संचार आसानी से हो सके, मटर के पौधों के लिए आदर्श होती है। बहुत भारी या अधिक चिकनी मिट्टी में मटर की जड़ें ठीक से विकसित नहीं हो पातीं, जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है और उत्पादन घट जाता है।
जिन खेतों में पहले पानी भरने की समस्या नहीं होती और मिट्टी लंबे समय तक सख्त नहीं रहती, वहां मटर की फसल अधिक सफल होती है।
दोमट और बलुई दोमट मिट्टी का महत्व
मटर की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। इन मिट्टियों में नमी धारण करने की क्षमता और जल निकास दोनों का अच्छा संतुलन होता है।
दोमट मिट्टी में जैविक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं, जिससे पौधों को निरंतर पोषण मिलता रहता है। वहीं बलुई दोमट मिट्टी जड़ों को फैलने की पूरी जगह देती है, जिससे पौधे मजबूत बनते हैं और फलियों की संख्या बढ़ती है।
यही कारण है कि अधिकतर सफल मटर किसान इन्हीं मिट्टियों में खेती करना पसंद करते हैं।
मिट्टी का pH मान
मटर की फसल के लिए मिट्टी का pH मान भी बहुत अहम भूमिका निभाता है। मटर की खेती के लिए 6.0 से 7.5 pH मान वाली मिट्टी को सर्वोत्तम माना जाता है। इस pH स्तर पर पौधे मिट्टी से पोषक तत्वों को आसानी से ग्रहण कर पाते हैं।
अगर मिट्टी बहुत ज्यादा अम्लीय या क्षारीय हो, तो पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इसलिए खेत की तैयारी से पहले मिट्टी की जांच करा लेना किसानों के लिए एक समझदारी भरा कदम होता है।
जल निकास का महत्व
मटर की खेती में जल निकास की व्यवस्था बेहद जरूरी होती है। खेत में पानी रुकने से जड़ सड़न जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे पूरी फसल खराब होने का खतरा रहता है। मटर के पौधे अधिक पानी सहन नहीं कर पाते, इसलिए खेत ऐसा होना चाहिए जहां अतिरिक्त पानी आसानी से बाहर निकल सके।
हल्की ढलान वाला खेत या उचित नालियों की व्यवस्था मटर की फसल को सुरक्षित रखती है और उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है।
मटर की सफल खेती की नींव सही मिट्टी पर ही टिकी होती है। दोमट या बलुई दोमट मिट्टी, संतुलित pH मान और अच्छा जल निकास—ये तीनों मिलकर मटर की फसल को स्वस्थ और लाभदायक बनाते हैं। जब किसान मिट्टी की जरूरतों को समझकर खेती करता है, तब उसकी मेहनत सच में रंग लाती है और खेत हरी भरी मटर की फसल से भर जाता है।
मटर की उन्नत किस्में
मटर की खेती में मेहनत तभी सफल होती है, जब सही उन्नत किस्म का चयन किया जाए। अक्सर किसान अच्छी खेती करने के बावजूद अपेक्षित उत्पादन नहीं ले पाते, और इसकी सबसे बड़ी वजह होती है क्षेत्र और मौसम के अनुसार गलत किस्म का चुनाव। सही किस्म न केवल उत्पादन बढ़ाती है, बल्कि रोगों से बचाव, बेहतर गुणवत्ता और अधिक मुनाफा भी देती है। इसलिए मटर की खेती में किस्म का चयन दिल से और सोच समझकर करना बहुत जरूरी है।
जल्दी पकने वाली मटर की किस्में
जल्दी पकने वाली किस्में उन किसानों के लिए वरदान हैं, जो कम समय में फसल तैयार कर बाजार में जल्दी बिक्री करना चाहते हैं। ये किस्में आमतौर पर 55 से 65 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
इन किस्मों की खासियत यह होती है कि:
- फसल जल्दी तैयार हो जाती है
- बाजार में शुरुआती समय में अच्छे दाम मिलते हैं
- कम समय में नकद आमदनी होती है
जल्दी पकने वाली मटर की किस्में छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से लाभदायक मानी जाती हैं।
मध्यम अवधि वाली मटर की किस्में
मध्यम अवधि वाली किस्में संतुलित उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं। इन किस्मों को तैयार होने में लगभग 70 से 80 दिन का समय लगता है।
इनकी विशेषताएं हैं:
- पौधे मजबूत होते हैं
- फलियां अधिक संख्या में लगती हैं
- दाने आकार में बड़े और स्वाद में मीठे होते हैं
जिन किसानों के पास सिंचाई और देखभाल की उचित व्यवस्था होती है, उनके लिए मध्यम अवधि वाली किस्में एक सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प होती हैं।
अधिक उत्पादन देने वाली मटर की किस्में
अगर किसान का लक्ष्य प्रति एकड़ अधिक पैदावार लेना है, तो अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। ये किस्में वैज्ञानिक तरीके से विकसित की गई होती हैं और उचित देखभाल मिलने पर शानदार परिणाम देती हैं।
इन किस्मों की खास बातें:
- प्रति पौधा ज्यादा फलियां
- रोगों के प्रति बेहतर सहनशीलता
- व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त
हालांकि इन किस्मों में थोड़ी अधिक देखभाल की जरूरत होती है, लेकिन सही प्रबंधन से ये किसानों को दोगुना मुनाफा देने की क्षमता रखती हैं।
क्षेत्र के अनुसार किस्म का चयन
मटर की खेती में सबसे अहम बात है अपने क्षेत्र के अनुसार किस्म का चयन। हर क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी और तापमान अलग अलग होता है, इसलिए एक ही किस्म हर जगह समान परिणाम नहीं देती।
- ठंडे क्षेत्रों में ठंड सहन करने वाली किस्में बेहतर रहती हैं
- मैदानी इलाकों में मध्यम अवधि वाली किस्में सफल होती हैं
- जहां रोगों का प्रकोप ज्यादा हो, वहां रोग प्रतिरोधी किस्में चुननी चाहिए
स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या अनुभवी किसानों की सलाह लेकर किस्म का चुनाव करना हमेशा फायदेमंद रहता है।
मटर की खेती में उन्नत किस्मों का सही चयन ही सफलता की पहली सीढ़ी है। जल्दी पकने वाली, मध्यम अवधि वाली या अधिक उत्पादन देने वाली किस्म हर किसान को अपनी जरूरत, क्षेत्र और संसाधनों के अनुसार फैसला लेना चाहिए। जब सही किस्म सही खेत में बोई जाती है, तब मटर की फसल न केवल खेत को हरा-भरा बनाती है, बल्कि किसान के चेहरे पर भी संतोष और खुशी ले आती है।
खेत की तैयारी कैसे करें
मटर की अच्छी और भरपूर पैदावार की शुरुआत खेत की सही तैयारी से होती है। अक्सर किसान बीज और खाद पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन खेत की तैयारी को हल्के में ले लेते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर खेत अच्छी तरह तैयार हो, तो मटर का बीज जल्दी अंकुरित होता है, पौधे मजबूत बनते हैं और फसल पूरे मौसम स्वस्थ रहती है। सही तरीके से की गई खेत की तैयारी किसान की आधी मेहनत खुद ही कम कर देती है।
पहली जुताई का तरीका
मटर की खेती के लिए खेत की पहली जुताई बहुत महत्वपूर्ण होती है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर से करनी चाहिए। इससे खेत में मौजूद पुराने फसल अवशेष, खरपतवार और कीटों के अंडे नष्ट हो जाते हैं।
पहली जुताई के बाद खेत को कुछ दिन खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि धूप और हवा से मिट्टी शुद्ध हो सके। इसके बाद 2–3 हल्की जुताइयाँ करनी चाहिए, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए और बीज बोने के लिए उपयुक्त बन सके।
गोबर की खाद या जैविक खाद का उपयोग
मटर की खेती में गोबर की सड़ी हुई खाद या जैविक खाद का बहुत बड़ा महत्व होता है। खेत की अंतिम जुताई से पहले प्रति एकड़ अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को धीरे धीरे पोषण मिलता रहता है।
जैविक खाद न केवल उत्पादन बढ़ाती है, बल्कि मिट्टी की संरचना को भी सुधारती है। इससे खेत लंबे समय तक उपजाऊ बना रहता है और अगली फसलों को भी फायदा होता है।
खेत को समतल करने का महत्व
जुताई और खाद डालने के बाद खेत को समतल करना बहुत जरूरी होता है। समतल खेत में बीज समान गहराई पर गिरते हैं, जिससे अंकुरण एकसार होता है। साथ ही, सिंचाई के समय पानी पूरे खेत में बराबर फैलता है और कहीं जलभराव तो कहीं सूखे की स्थिति नहीं बनती।
असमान खेत में मटर की फसल कमजोर रह जाती है और उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए पाटा या लेवलर से खेत को अच्छी तरह समतल करना किसान के लिए फायदेमंद साबित होता है।
पाटा लगाने की प्रक्रिया
खेत को समतल करने के लिए पाटा लगाना एक सरल और प्रभावी तरीका है। अंतिम जुताई के बाद खेत में पाटा चलाया जाता है, जिससे मिट्टी की ऊपरी सतह चिकनी और सख्त हो जाती है। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और बीज मिट्टी के संपर्क में अच्छी तरह आ जाता है।
पाटा लगाने से:
- बीज का अंकुरण अच्छा होता है
- मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है
- खेत बोनी के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है
मटर की खेती में खेत की तैयारी वह नींव है, जिस पर पूरी फसल खड़ी होती है। सही जुताई, जैविक खाद का उपयोग, खेत का समतलीकरण और पाटा लगाने की सही प्रक्रिया—ये सभी मिलकर मटर की फसल को मजबूत और लाभदायक बनाते हैं। जब किसान खेत को दिल से तैयार करता है, तब मटर की हर फली उसकी मेहनत की गवाही देती है
बुवाई का सही समय और तरीका
मटर की खेती में सही समय पर और सही तरीके से की गई बुवाई ही अच्छी पैदावार की सबसे मजबूत नींव होती है। अगर बुवाई में थोड़ी-सी भी लापरवाही हो जाए, तो बीज का अंकुरण कमजोर रहता है और पौधे सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते। इसलिए किसान के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह मटर की बुवाई का समय, बीज की मात्रा और बोने की विधि को पूरी समझदारी के साथ अपनाए।
मटर की बुवाई का सही समय
मटर की फसल ठंडे मौसम में सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है। उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में मटर की बुवाई का सही समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक माना जाता है। इस समय तापमान न ज्यादा गर्म होता है और न ही बहुत ठंडा, जिससे बीज का अंकुरण तेजी से होता है।
बहुत जल्दी बुवाई करने से पौधों पर गर्मी का असर पड़ सकता है, जबकि देर से बुवाई करने पर पाले का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए सही समय पर बुवाई करना मटर की सफल खेती के लिए बेहद जरूरी है।
बीज की मात्रा प्रति एकड़
मटर की अच्छी फसल के लिए सही मात्रा में बीज का प्रयोग करना भी उतना ही जरूरी है। सामान्यतः मटर की खेती के लिए 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
अगर बीज बहुत कम डाला जाए, तो पौधों की संख्या कम रह जाती है और उत्पादन घटता है। वहीं, ज्यादा बीज डालने से पौधों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, जिससे फसल कमजोर हो सकती है। संतुलित बीज मात्रा ही बेहतर परिणाम देती है।
कतार से कतार की दूरी
मटर की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी का सही होना बहुत जरूरी है। आमतौर पर कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। इससे पौधों को फैलने और बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है।
सही दूरी रखने से:
- पौधों को भरपूर धूप और हवा मिलती है
- रोग और कीट कम लगते हैं
- निराई-गुड़ाई करना आसान हो जाता है
बीज बोने की गहराई
बीज बोने की गहराई भी मटर की बुवाई में अहम भूमिका निभाती है। मटर के बीज को 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना सबसे उपयुक्त माना जाता है।
अगर बीज बहुत गहरा बो दिया जाए, तो अंकुरण में समय लगता है और कई बार बीज बाहर ही नहीं निकल पाता। वहीं, बहुत ऊपर बोने पर बीज सूख सकता है या पक्षियों द्वारा नुकसान हो सकता है।
छिटकवां बनाम कतार विधि
मटर की बुवाई दो तरीकों से की जाती है छिटकवां विधि और कतार विधि।
छिटकवां विधि में बीज खेत में समान रूप से बिखेर दिए जाते हैं। यह तरीका आसान तो है, लेकिन इसमें बीज की मात्रा ज्यादा लगती है और पौधों की दूरी नियंत्रित नहीं रह पाती।
वहीं, कतार विधि को मटर की खेती के लिए अधिक लाभदायक माना जाता है। इस विधि में बीज कतारों में बोए जाते हैं, जिससे पौधों की दूरी सही रहती है, निराई-गुड़ाई आसान होती है और उत्पादन भी बेहतर मिलता है।
मटर की खेती में सही समय पर, सही मात्रा में और सही विधि से की गई बुवाई ही सफलता की कुंजी है। जब किसान बुवाई के हर छोटे बड़े पहलू पर ध्यान देता है, तब मटर की फसल स्वस्थ, मजबूत और भरपूर पैदावार देने वाली बनती है। सही शुरुआत ही अच्छी फसल का सबसे मजबूत आधार होती है।
बीज उपचार का महत्व
मटर की खेती में अच्छी पैदावार का सपना तभी पूरा होता है, जब शुरुआत मजबूत हो। और इस मजबूत शुरुआत की पहली सीढ़ी है बीज उपचार। बहुत से किसान अच्छे बीज तो खरीद लेते हैं, लेकिन बिना उपचार के ही बुवाई कर देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि बीज मिट्टी में जाते ही रोगों का शिकार हो जाते हैं। बीज उपचार एक छोटा-सा काम है, लेकिन यही छोटा कदम फसल को बड़े नुकसान से बचा सकता है।
बीज उपचार क्यों जरूरी है
बीज उपचार इसलिए जरूरी होता है ताकि बीज मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंद, बैक्टीरिया और कीटों से सुरक्षित रह सके। उपचारित बीज:
- जल्दी और समान रूप से अंकुरित होते हैं
- पौधे शुरू से ही मजबूत बनते हैं
- फसल में रोग लगने की संभावना कम हो जाती है
बीज उपचार करने से किसान की लागत भी कम होती है, क्योंकि बाद में दवाइयों पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता।
फफूंद और रोगों से बचाव
मटर की खेती में बीज से फैलने वाले रोग बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। जैसे जड़ सड़न, उकठा रोग और फफूंदजनित बीमारियां। बिना उपचार के बोए गए बीज अक्सर अंकुरण से पहले ही सड़ जाते हैं या कमजोर पौधे निकलते हैं।
बीज उपचार से बीज के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बन जाता है, जो फफूंद और रोगों को बीज तक पहुंचने से रोकता है। इससे खेत में पौधों की संख्या समान रहती है और फसल स्वस्थ रहती है।
जैविक बीज उपचार के तरीके
जो किसान जैविक खेती करना चाहते हैं, उनके लिए जैविक बीज उपचार एक बेहतरीन विकल्प है।
जैविक बीज उपचार के प्रमुख तरीके हैं:
- ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार, जो फफूंद को खत्म करता है
- गोमूत्र या नीम आधारित घोल में बीज भिगोना
- राइजोबियम कल्चर से उपचार, जिससे पौधों को प्राकृतिक नाइट्रोजन मिलती है
- ये तरीके पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं और मिट्टी की सेहत को भी बेहतर बनाते हैं।
रासायनिक उपचार की जानकारी
अगर किसान पारंपरिक खेती करता है, तो वह रासायनिक बीज उपचार भी अपना सकता है। रासायनिक उपचार में फफूंदनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है, जो बीज को शुरुआती रोगों से बचाती हैं।
रासायनिक उपचार करते समय ध्यान रखें:
- सही मात्रा में ही दवा का प्रयोग करें
- उपचार के बाद बीज को छाया में सुखाएं
- बीज को तुरंत बो दें, ज्यादा देर तक न रखें
सही तरीके से किया गया रासायनिक उपचार मटर की फसल को मजबूत और रोगमुक्त बनाता है।
बीज उपचार मटर की खेती में एक छोटा-सा निवेश है, लेकिन इसका लाभ पूरे मौसम तक मिलता है। चाहे जैविक तरीका अपनाएं या रासायनिक, बीज उपचार से फसल की शुरुआत सुरक्षित और मजबूत होती है। जब किसान शुरुआत सही करता है, तो मटर की हर पौध उसके भरोसे और मेहनत का फल बन जाती है।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
मटर की अच्छी पैदावार केवल बीज और सिंचाई से नहीं मिलती, बल्कि सही खाद और उर्वरक प्रबंधन से मिलती है। मटर का पौधा जितना ऊपर से हरा भरा दिखाई देता है, उतना ही अंदर से पोषण का सही संतुलन चाहता है। अगर पौधे को समय पर और जरूरत के अनुसार पोषक तत्व मिल जाएं, तो वह मजबूत बनता है, ज्यादा फूल देता है और फलियों से खेत भर जाता है। समझदारी से डाली गई खाद किसान की मेहनत को कई गुना बढ़ा देती है।
मटर की फसल में पोषक तत्वों की आवश्यकता
मटर एक दलहनी फसल है, इसलिए इसकी पोषण आवश्यकताएं दूसरी फसलों से थोड़ी अलग होती हैं। मटर के पौधों को मुख्य रूप से:
- शुरुआती बढ़वार के लिए पोषक तत्व
- फूल और फल बनने के समय ऊर्जा
- दानों के भराव के लिए संतुलित आहार
की जरूरत होती है। अगर किसी भी चरण में पोषण की कमी हो जाए, तो पौधे कमजोर हो जाते हैं और उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलन
मटर की फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) का सही संतुलन बेहद जरूरी होता है।
नाइट्रोजन पौधों की शुरुआती बढ़वार और हरी पत्तियों के लिए जरूरी होती है, लेकिन मटर खुद भी मिट्टी में नाइट्रोजन बनाती है, इसलिए इसकी मात्रा सीमित रखनी चाहिए।
फास्फोरस जड़ों को मजबूत बनाता है और फूल व फल बनने में मदद करता है।
पोटाश पौधों को रोगों से बचाता है और दानों की गुणवत्ता सुधारता है।
इन तीनों का संतुलन ही मटर की फसल को मजबूत और उत्पादक बनाता है।
जैविक खाद का महत्व
मटर की खेती में जैविक खाद का विशेष महत्व है। अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ साथ उसकी संरचना को भी सुधारती है। जैविक खाद से मिट्टी में लाभकारी जीवाणु बढ़ते हैं, जो पौधों को प्राकृतिक रूप से पोषण प्रदान करते हैं।
जैविक खाद के प्रयोग से:
- मिट्टी लंबे समय तक उपजाऊ रहती है
- पौधे स्वस्थ और मजबूत बनते हैं
- उत्पादन की गुणवत्ता बेहतर होती है
- खाद डालने का सही समय
खाद का सही समय पर प्रयोग करना उतना ही जरूरी है, जितना उसकी मात्रा।
खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद या जैविक खाद डालनी चाहिए।
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बुवाई से पहले या बुवाई के समय करना बेहतर रहता है।
जरूरत पड़ने पर फूल आने से पहले हल्की मात्रा में खाद दी जा सकती है।
गलत समय पर खाद डालने से या तो उसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता या पौधों को नुकसान हो सकता है।
मटर की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन एक कला की तरह है, जिसमें संतुलन सबसे अहम होता है। न ज्यादा, न कम बस जितनी जरूरत हो उतनी। जब किसान पौधों की जरूरत समझकर सही समय पर पोषण देता है, तब मटर की फसल खेत में ही नहीं, किसान की आमदनी में भी हरियाली भर देती है।
मटर की खेती में सामान्य गलतियाँ
मटर की खेती देखने में आसान लगती है, लेकिन छोटी-छोटी गलतियाँ पूरी फसल पर भारी पड़ सकती हैं। कई बार किसान मेहनत तो पूरी करता है, फिर भी उत्पादन कम रह जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह होती है सामान्य लेकिन नजरअंदाज की गई गलतियाँ। अगर इन गलतियों को समय रहते समझ लिया जाए, तो मटर की खेती न केवल सफल होती है बल्कि मुनाफे का जरिया भी बन जाती है।
गलत समय पर बुवाई
मटर की खेती में सबसे बड़ी और आम गलती है गलत समय पर बुवाई करना।
बहुत जल्दी बुवाई करने से पौधों पर गर्मी का असर पड़ता है
बहुत देर से बुवाई करने पर पाले का खतरा बढ़ जाता है
दोनों ही स्थितियों में पौधों की बढ़वार कमजोर रहती है और फूल व फलियां कम लगती हैं। सही समय पर बुवाई ही मजबूत पौधों और अच्छी पैदावार की पहली शर्त होती है।
अधिक या कम सिंचाई
मटर की फसल को पानी की जरूरत तो होती है, लेकिन संतुलन बहुत जरूरी है।
अधिक सिंचाई से खेत में पानी भर जाता है, जिससे जड़ सड़न और रोग फैलने लगते हैं
कम सिंचाई से पौधे मुरझा जाते हैं और फलियों का विकास रुक जाता है
सही समय पर और जरूरत के अनुसार सिंचाई करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और उत्पादन बेहतर होता है।
उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग
कई किसान सोचते हैं कि ज्यादा खाद डालने से ज्यादा उत्पादन मिलेगा, लेकिन यही सोच नुकसान का कारण बन जाती है।
अधिक नाइट्रोजन देने से पौधे तो हरे हो जाते हैं, लेकिन फलियां कम बनती हैं
फास्फोरस और पोटाश की कमी से फूल और दाने कमजोर रह जाते हैं
उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग मिट्टी की सेहत भी बिगाड़ देता है। सही मात्रा और सही समय पर खाद देना ही समझदारी है।
रोग कीट की अनदेखी
मटर की खेती में रोग और कीट अचानक हमला कर सकते हैं। अगर शुरुआत में ही इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए, तो थोड़े ही समय में पूरी फसल खराब हो सकती है।
शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है
समय पर रोकथाम न करने से नुकसान बढ़ जाता है
नियमित निरीक्षण और सही प्रबंधन से रोग कीट पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।
मटर की खेती में सफलता मेहनत से ज्यादा सावधानी और समझदारी पर निर्भर करती है। गलत समय पर बुवाई, सिंचाई में लापरवाही, खाद का गलत इस्तेमाल और रोग कीट की अनदेखी ये चारों गलतियाँ किसान की कमाई को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जब किसान इन गलतियों से सीख लेता है, तब मटर की खेती वास्तव में लाभ का सौदा बन जाती है और मेहनत का पूरा फल मिलता है।
मटर की खेती एक ऐसी फसल है, जो सही जानकारी और सही तकनीक के साथ की जाए तो किसान के लिए कम समय में अच्छा लाभ देने वाली साबित होती है। इस पूरी खेती प्रक्रिया में कुछ मुख्य बातें हमेशा याद रखने योग्य हैं उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन, उन्नत किस्मों का प्रयोग, समय पर बुवाई, बीज उपचार, संतुलित खाद उर्वरक प्रबंधन, उचित सिंचाई और रोग-कीटों पर समय रहते नियंत्रण। ये सभी बिंदु मिलकर मटर की सफल खेती की मजबूत नींव तैयार करते हैं।
नए किसानों के लिए सबसे जरूरी सुझाव यही है कि वे मटर की खेती को केवल अनुमान के आधार पर न करें। अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी को समझें, अनुभवी किसानों या कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और खेती के हर चरण में सावधानी बरतें। शुरुआत में छोटे क्षेत्र में खेती करके अनुभव लेना भी एक समझदारी भरा कदम होता है। इससे नुकसान का जोखिम कम होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
सही तकनीक से किया गया मटर उत्पादन न केवल फसल को रोगों से बचाता है, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को बढ़ाता है। जब किसान विज्ञान और अनुभव को साथ लेकर खेती करता है, तब खेत हरी भरी मटर की फलियों से भर जाता है और मेहनत का मीठा फल मिलता है। सही जानकारी, धैर्य और लगन यही सफल मटर की खेती की असली कुंजी है।






0 Comments